बुधवार, 10 जुलाई 2013

कैसे इंसान हो गए हैं हम...

अब अपने आप से परेशान हो गए हैं हम,
आदमी थे अब तलक, शैतान हो गए हैं हम!

उन्हें जम्हूरियत ने सिखा दी ये अदा भी--
दीदें फाड़कर बताते हैं, महान हो गए हैं हम!

ख़ुशी हो, गम हो या खौफनाक मंज़र हो,
सुर्खियाँ बटोरने को हैवान हो गए हैं हम!

सियासत उनके पांवों की हाँ, बन है बेड़ी,
कभी बा-ईमान थे, बे-ईमान हो गए हैं हम!

रो पड़ी आँखें मेरी, उजड़े चमन को देखकर,
और आँखें मूंदकर, भगवान् हो गए हैं हम!

कोई हाल तो पूछे, जिनके घरवाले नहीं लौटे,
सियासतदान क्या जाने, हलकान हो गए हैं हम!

ऐसी मौतों पर अब तो पीढियां रोती रहेंगी,
सैलाब से गिला कैसा, पहाड़ों पर मेहरबान हो गए हैं हम!

गर समय से देश के रक्षक वहाँ नहीं आते,
हलक में जाँ फँसी थी, श्मशान हो गए थे हम!

वो सज़दे में झुके थे, तेरे दर पर पहुँचकर,
खुदा की दरियादिली के कद्रदान हो गए हैं हम!

भई, हमसे तो खासे भले हैं जानवर भी,
क्या पता कैसे अब, इंसान हो गए हैं हम!!